प्रोफ़ेसर सिद्धार्थ संघवी की कलम से
आज मैंने एक नई और महत्वपूर्ण बात सीखी, जिसने मेरे विचारों को एक नई दिशा दी। यह सीख धैर्य की उस अदम्य शक्ति के बारे में है, जो विपरीत परिस्थितियों को भी अपने पक्ष में मोड़ सकती है। यह घटना मुझे यह समझने में मदद करती है कि जीवन में कितनी भी कठोर परिस्थितियाँ क्यों न हों, यदि हम उनके सामने धैर्य और हिम्मत के साथ डटे रहते हैं, तो अंततः परिस्थितियाँ हमारे अनुकूल हो जाती हैं।
आज मेरी कक्षा में एक विद्यार्थी 20 मिनट देर से आया। सामान्यतः, मैं विद्यार्थियों को शिक्षा से दूर करने को सही दंड नहीं मानता, क्योंकि मेरा मानना है कि जो शिक्षित होने आया है, उसे शिक्षा से वंचित करना उचित नहीं। लेकिन आज, एक गुरु के रूप में, मैंने एक कठोर निर्णय लिया और उसे क्लास से बाहर कर दिया। जब मैंने उससे देर से आने का कारण पूछा, तो उसने बताया कि वह बाहर अन्य फैकल्टी से डाउट पूछ रहा था। मैंने उसे यह कहकर बाहर भेजा कि उसे मुझसे पूछकर जाना चाहिए था। उसने मेरे निर्णय को बिना किसी विरोध के स्वीकार किया और चुपचाप बाहर चला गया। मैं भी अपने कार्यों में व्यस्त हो गया, लगभग 30-40 मिनट तक मैंने डाउट्स बताए, डीपीपी सॉल्व किए और बच्चों के प्रश्न हल किए।
कक्षा समाप्त होने के बाद, जब मैं बाहर निकला, तो मैंने एक ऐसा दृश्य देखा जिसने मुझे भीतर तक झकझोर दिया। वह विद्यार्थी, जिसे मैंने बाहर भेजा था, दरवाजे से सटकर वहीं खड़ा था! मैंने सोचा था कि शायद वह किसी और क्लास में जाकर अपनी सेल्फ-स्टडी करने लगा होगा, लेकिन वह वहीं डटा रहा, इस उम्मीद में कि शायद मेरा हृदय परिवर्तन हो जाए और मैं उसे अंदर ले लूँ। सामान्यतः ऐसा होता भी है, पर आज मैं उसके इस कृत्य पर थोड़ा कठोर था, या शायद आज ईश्वर ठान चुके थे कि मुझे कुछ नया सिखाएंगे।
मैंने उसे अंदर बुलाया और अचरज के साथ पूछा, "तुम अभी तक बाहर ही खड़े थे?" उसने कहा, "जी सर।" उस पल, मैंने उसे अंदर लिया और मेरे भीतर से स्वतः ही उसे सेल्यूट करने की इच्छा हुई। मैंने उसके धैर्य की मुक्त कंठ से तारीफ की। उसके इस अद्भुत धैर्य ने सचमुच मेरे हृदय को परिवर्तित कर दिया था। यह मेरे लिए केवल एक घटना नहीं, बल्कि एक गुरु के रूप में एक गहरा अनुभव था, जिसने मुझे विद्यार्थी के दृढ़ संकल्प की शक्ति का प्रत्यक्ष प्रमाण दिया।
आज मैंने यह सीखा कि यदि कितनी ही मुश्किल, कठोर परिस्थितियाँ आपके सामने हों और आप उनके सामने डटे रहते हैं, हिम्मत के साथ, धैर्य के साथ, तो आपके सामने परिस्थितियाँ झुक जाती हैं। जो लोग आपकी विपरीत हैं, वे आपके हो जाते हैं, और वह गेंद जो आपके पाले में नहीं थी, वह भी आपके पाले में आ जाती है। आप उसको खेल सकते हैं, आप विनर हो सकते हैं। आज देखिए, उस व्यक्ति का पूरा का पूरा व्यवहार मुझे बदल गया। यह 'बदला पूरा' रिवेंज वाला नहीं था, जहाँ हम अच्छे से खराब हो जाते हैं। बल्कि, यहाँ उस व्यक्ति ने मेरे हृदय परिवर्तन का आधार बनकर यह दिखाया कि अगर कोई समस्या सामने है और हम उसके सामने डटकर खड़े हैं, तो निश्चित रूप से परिस्थितियाँ हमारे पक्ष में होंगी।
मेरे प्रिय विद्यार्थियों, यह घटना आप सबके लिए एक महत्वपूर्ण संदेश है। आपकी पढ़ाई में, आपके लक्ष्यों को प्राप्त करने की राह में अनेक बाधाएँ आएंगी। कभी परिणाम आपके पक्ष में नहीं होंगे, कभी परिस्थितियाँ प्रतिकूल लगेंगी। लेकिन ऐसे समय में, सबसे महत्वपूर्ण है धैर्य बनाए रखना, शांत चित्त रहना और अपनी मेहनत पर विश्वास रखना।
आप सभी विद्यार्थी, जीवन की इस यात्रा में धैर्य और साहस के साथ आगे बढ़ें। आपकी मेहनत, आपकी लगन और आपका धैर्य ही आपकी सबसे बड़ी शक्ति है। मेरी यही कामना है कि आप सभी अपने लक्ष्यों को प्राप्त करें और जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के नए आयाम स्थापित करें।
शुभकामनाओं सहित,
प्रोफ़ेसर सिद्धार्थ संघवी