प्रोफ़ेसर सिद्धार्थ संघवी की ओर से छात्रों को आशीर्वाद
गुरु पूर्णिमा का पावन पर्व गुरुओं के प्रति कृतज्ञता और सम्मान व्यक्त करने का दिन है। यह वह शुभ अवसर है जब हम उन सभी गुरुजनों को नमन करते हैं जिन्होंने हमें ज्ञान, विवेक और सही मार्ग दिखाया। भारतीय संस्कृति में गुरु को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के समान माना गया है, क्योंकि वे ही अज्ञानता के अंधकार को दूर कर ज्ञान का प्रकाश फैलाते हैं।
"गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वरः।
गुरुः साक्षात् परब्रह्म तस्मै श्री गुरवे नमः॥"
अर्थात्: गुरु ही ब्रह्मा हैं, गुरु ही विष्णु हैं, गुरु ही शंकर हैं। गुरु ही साक्षात परब्रह्म हैं, ऐसे गुरु को मैं नमन करता हूँ।
भारत की भूमि पर गुरु-शिष्य परंपरा का एक समृद्ध और प्राचीन इतिहास रहा है। यह केवल शिक्षा देने और प्राप्त करने का संबंध नहीं, बल्कि ज्ञान, संस्कार और नैतिक मूल्यों के हस्तांतरण का एक पवित्र बंधन है। इस परंपरा में गुरु अपने शिष्य को केवल किताबी ज्ञान नहीं देते, बल्कि उसे जीवन जीने की कला, चुनौतियों का सामना करने का साहस और समाज के प्रति अपने कर्तव्यों का बोध भी कराते हैं। शिष्य भी गुरु के प्रति पूर्ण निष्ठा, आदर और समर्पण भाव रखता है।
यह परंपरा व्यक्तिगत विकास और सामाजिक उत्थान दोनों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण रही है। गुरु-शिष्य का संबंध विश्वास, सम्मान और प्रेम पर आधारित होता है, जो पीढ़ी-दर-पीढ़ी ज्ञान के प्रवाह को सुनिश्चित करता है।
भारत के पूर्व राष्ट्रपति और महान वैज्ञानिक डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम का जीवन गुरु-शिष्य परंपरा का एक उत्कृष्ट उदाहरण है। उनके जीवन में उनके शिक्षकों का गहरा प्रभाव रहा, जिन्होंने उन्हें सपने देखने और उन्हें पूरा करने के लिए प्रेरित किया।
कलाम के प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक, श्री शिव सुब्रमण्य अय्यर, उनके जीवन में एक महत्वपूर्ण गुरु थे। एक बार उन्होंने कक्षा में यह समझाया कि पक्षी कैसे उड़ते हैं। कलाम को यह बात समझ नहीं आई। अय्यर सर ने उन्हें अगले दिन समुद्र तट पर बुलाया और वहाँ पक्षियों को उड़ते हुए दिखाया, साथ ही उड़ान के सिद्धांतों को भी समझाया। इस घटना ने युवा कलाम के मन में उड़ान के प्रति गहरी रुचि पैदा की और उन्हें वैमानिकी इंजीनियरिंग (Aeronautical Engineering) के क्षेत्र में जाने के लिए प्रेरित किया। अय्यर सर ने उन्हें न केवल ज्ञान दिया, बल्कि उसे व्यावहारिक रूप से अनुभव करने का अवसर भी दिया, जो एक सच्चे गुरु की पहचान है।
डॉ. कलाम ने हमेशा अपने शिक्षकों के प्रति गहरा सम्मान व्यक्त किया। उनका मानना था कि एक शिक्षक ही समाज की रीढ़ होता है, जो भविष्य का निर्माण करता है। उन्होंने अपने जीवन में ज्ञान प्राप्त करने और उसे दूसरों तक पहुँचाने को सर्वोच्च प्राथमिकता दी। उनकी सादगी, कड़ी मेहनत और देश के प्रति समर्पण ने उन्हें 'मिसाइल मैन' और 'जनता के राष्ट्रपति' के रूप में प्रसिद्ध किया। उनका जीवन हमें सिखाता है कि गुरु द्वारा दिया गया ज्ञान और प्रेरणा हमें किसी भी ऊंचाई तक ले जा सकती है, बशर्ते हम उसे ग्रहण करने और उस पर अमल करने के लिए तैयार हों।
इस गुरु पूर्णिमा के पावन अवसर पर, मैं प्रोफ़ेसर सिद्धार्थ संघवी, आप सभी प्रिय छात्रों को हार्दिक शुभकामनाएँ देता हूँ। आप सभी अपने गुरुजनों का सम्मान करें, उनके दिखाए मार्ग पर चलें और ज्ञान के प्रकाश से अपने जीवन को रोशन करें। मेरी यही कामना है कि आप सभी जीवन के हर क्षेत्र में सफलता प्राप्त करें, देश और समाज के लिए उपयोगी बनें, और एक उज्ज्वल भविष्य का निर्माण करें।
आपका भविष्य उज्ज्वल हो, आप सदैव प्रगति पथ पर अग्रसर रहें।
शुभकामनाओं सहित,
प्रोफ़ेसर सिद्धार्थ संघवी